रामकथा अनंत है | मानसकार कहते हैं:
राम नाम गुन चरित सुहाए। जनम करम अगनित श्रुति गाए।।
जथा अनंत राम भगवाना। तथा कथा कीरति गुन नाना।।
“वेदों ने राम के सुंदर नाम, गुण, चरित्र, जन्म और कर्म सभी अनगिनत कहे हैं। जिस प्रकार भगवान राम अनंत हैं, उसी तरह उनकी कथा, कीर्ति और गुण भी अनंत हैं। “
~ श्रीरामचरितमानस (1/114/3-4) ~
अन्यत्र भी कहा है :
राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥
~ श्रीरामचरितमानस (1/114/3-4) ~
आज हम लोग रामचरितमानस के ऐसे पंक्ति पर विचार करेंगे जिसमें बहुत गूढ़ विचार भर रखे हैं – हालाँकि ऊपर की दृष्टि से पढ़ने पर वे रहस्य दृष्टिगोचर नहीं होते | प्रसंग है मानस में राम और सीता जी के पहले मिलन का | राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र जी के साथ जनकपुर पधारे हैं | सुबह को गुरु के पूजा के लिए फूल लाने के लिए दोनों भाई पुष्प वाटिका जाते हैं :
समय जानि गुर आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई॥
(पूजा का) समय जानकर, गुरु की आज्ञा पाकर दोनों भाई फूल लेने चले॥
~ श्रीरामचरितमानस (1/227/2) ~
मालियों से पूछकर वे दोनों फूल चुन ही रहे होते हैं कि सीता जी भी उस वाटिका में आ पहुँचती हैं:
तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई।।
“उसी समय सीताजी वहाँ आईं। माता ने उन्हें गिरिजा (पार्वती) जी की पूजा करने के लिए भेजा था॥”
~ श्रीरामचरितमानस (1/228/2) ~
सबसे पहले तो हम सीता शब्द के पीछे के रहस्यों को बताते हैं | गोस्वामीजी चाहते तो सीता के जगह जनकसुता, जानकी आदि शब्दों का भी प्रयोग कर सकते थे – लेकिन उससे पाठकों में भ्रम पैदा होता | जनक की और भी पुत्रियाँ थी | जानकी से उर्मिला मांडवी आदि का भी अर्थ निकल सकता था | इसलिए मानसकार ने सीता शब्द का प्रयोग किया | इतना ही नहीं, एक और गंभीर संकेत है | सीता शीतलता का प्रतीक है – जैसा कि मंदोदरी ने आगे रावण को कहा :
तव कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई॥
“सीता आपके कुल रूपी कमलों के वन को दुःख देने वाली जाड़े की रात्रि के समान आई है। “
~ श्रीरामचरितमानस (5/36/10) ~
यहाँ भी बात कुछ ऐसी है कि जबसे रामजी ने अवतार लिया है तब-से सीता जी से मुलाकात नहीं हुई है | उस विरह के अग्नि का आज शमन होने वाला है | इसलिए सीता शब्द का रहस्यमय प्रयोग गोस्वामीजी करते हैं |
अब एक और तथ्य की ओर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहूँगा | राम स्वयं गुरु से आज्ञा लेकर आए हैं जबकि सीताजी को माँ ने भेजा है | यह तो ऊपर से ग़लत प्रतीत होता है क्योंकि राम स्वयं आज्ञा लेकर आ गये | आप स्वयं बतायें – कोई विद्यार्थी स्वयं कोई काम कर ले proactively और दूसरा विद्यार्थी बोलने पर काम करे passively तो आप किसे बेहतर विद्यार्थी कहेंगे ? स्वाभाविक है की जो स्वयं बिना पूछे काम कर ले वह विशिष्ट विद्यार्थी कहा जाएगा | तो इस दृष्टि से राम बेहतर जान पड़ते हैं और सीताजी निम्न कोटि की | पर ऐसा है नहीं | प्रसंग पर थोड़ी गंभीरता से विचार करें | रामजी क्यों आए हैं? गुरु की पूजा हेतु फूल लेने | और सीता जी क्यों आई हैं गिरिजा पूजन करने के वास्ते | कुंवारी कन्या गिरिजा पूजन पति के हेतु करती हैं | यह बात भागवत से भी प्रमाणित होती है | भागवत महापुराण में कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण का प्रकरण है | उसमें रुक्मिणी एक पत्र केशव को भेजती हैं जिसमें लिखती हैं:
पूर्वेद्युरस्ति महती कुलदेवियात्रा यस्यां बहिर्नववधूर्गिरिजामुपेयात्।।
“हमारे कुल में यह प्रथा है कि विवाह के एक दिन पहले कुलदेवी की पूजा की बड़ी यात्रा होती है | उस अवसर पर नववधू गिरिजा की पूजा करने के लिए नगर के बाहर जाती है |”
~ भागवत (10/52/42) ~
यहाँ भी अगले दिन धनुष यज्ञ है – जिसके बाद सीता का ब्याह हो जाएगा | इसलिए माता सुनयना ने सीता को गिरिजा पूजन के लिए भेजा | अब आप स्वयं बताइए – सीताजी स्वयं माता से बोलती की मैं पति के लिए इतनी आतुर हूँ की मुझे गिरिजा पूजन करना है और आज्ञा मांगती तो कैसा लगता ? लगता कि वो विवाह के लिए बहुत आतुर हैं ! इसलिए राम का स्वयं आज्ञा माँगना अपने स्थान पर उचित है और सीताजी की माता के आज्ञा पर आना भी अपने स्थान पर उचित है | अतएव कोई श्रेष्ठ और कोई निकृष्ट नहीं हैं |
श्रीरामचरितमानस में छोटी – छोटी बातों में मर्यादा का इतना सुंदर निर्वाह हुआ कि गंभीरता से इनका अध्ययन करने वाला चकित हुए बिना नहीं रह सकता !