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बिस्व बिलोचन चोर

श्रीरामचरितमानस काव्य, साहित्य और दर्शन शास्त्र का अद्भुत ग्रंथ है | यह ऐसा ग्रंथ है जिसे एक ग्रामीण चरवाहे से लेकर संस्कृत के विद्वान तक समान आदर देते हैं | सरल भाषा में लिखे होने की वजह से यह सबके लिए बोधगम्य है – लेकिन फिर भी इसमें अर्थ की ऐसी गहराइयाँ है की जिसे देखकर विद्वानों की बुद्धि भी चकरा जाती है |

मानस में एक जगह भरतजी के वक्तव्य के लिए कहा गया है :

सुगम अगम मृदु मंजु कठोरे।

अरथु अमित अति आखर थोरे।। अयोध्या कांड, 294/2 ||

अर्थात्:

भरतजी के वचन सुगम और अगम, सुंदर, कोमल और कठोर हैं। उनमें अक्षर थोड़े हैं, परन्तु अर्थ अत्यन्त अपार भरा हुआ है॥

प्रायः यही बात श्रीरामचरितमानस के लिए भी लागू होती है | 

आज हम बालकांड के ऐसे ही एक प्रसंग पर विचार करेंगे जिसमें थोड़े से शब्दों में तुलसीदासजी ने अपार अर्थ भर दिया है |

प्रसंग का परिचय

सीता स्वयंवर का प्रसंग वह समय है जब राम, लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र जनकपुर पहुँचते हैं। राजदरबार में राजा जनक ने सीता के स्वयंवर का आयोजन किया हुआ था। श्रीराम और लक्ष्मण उस राजसभा में प्रवेश करते हैं और उनकी आभा से पूरा समाज आलोकित हो उठता है। तुलसीदासजी लिखते हैं:

राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥
242

सुंदर, साँवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्वभर के नेत्रों को चुराने वाले कोशल नरेश दशरथ के कुमार राज समाज में सुशोभित हो रहे हैं॥ 242॥

इस दोहे में तुलसीदासजी ने श्रीराम को “बिस्व बिलोचन चोर” अर्थात “विश्वभर की आँखों के चोर” कहकर एक गहन अर्थ को संजोया है। इस “चोर” शब्द में कितने ही अद्भुत अर्थ छुपे हैं, जो श्रीराम के सौंदर्य, शील, और आकर्षण का प्रतीक हैं। नीचे हम इन भावार्थों को विस्तृत रूप से समझते हैं।

इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –

यहाँ चोर शब्द को कहकर तुलसीदासजी ने अद्भुत चमत्कार दिखाया है | एक शब्द में गागर में सागर भर देने का स्तुत्य काम केवल मानसकार ही कर सकते हैं | यथा :

1. चोर राजा के सामने नहीं आता

जो व्यक्ति चोर होता है, वह राजा या शासन के सामने आने से डरता है। वह छुपकर और चोरी से कार्य करता है। परंतु यहाँ श्रीराम, जो स्वयं चोर कहे गए हैं, राजदरबार में सबके सामने, निडर होकर उपस्थित हैं। यह विरोधाभास स्पष्ट करता है कि श्रीराम कोई साधारण चोर नहीं हैं, बल्कि वह एक अद्वितीय चोर हैं जो राजाओं के बीच निर्भय होकर खड़े हैं। उनकी चोरी में न कोई भय है और न ही कोई छल।

2. दूसरा भाव : राजकुमार चोरों को दंड देता है, और यहाँ राजकुमार स्वयं चोर है

एक राजकुमार का कर्तव्य होता है कि वह चोरों को दंड दे और अपनी प्रजा की सुरक्षा करे। लेकिन यहाँ श्रीराम, जो स्वयं राजा दशरथ के पुत्र हैं, चोर कहलाए हैं। यह भाव अद्भुत है, क्योंकि यह उनके सरल और आकर्षक स्वभाव का प्रतीक है। वह किसी को हानि नहीं पहुँचाते, बल्कि उनके “चोर” होने का अर्थ तो यह है कि वह सबका प्रेम चुरा लेते हैं।

3. तीसरा भाव: साधारण चोर एक समय में एक घर में ही चोरी करता है

आम चोर एक बार में केवल एक स्थान पर ही चोरी कर सकता है, परन्तु यहाँ श्रीराम ने एक साथ पूरे समाज की आँखें चुरा लीं। सभी राजकुमार, समाज के लोग, और स्वयं राजा जनक भी श्रीराम के सौंदर्य और करुणा में लीन हो जाते हैं। यह दर्शाता है कि उनका आकर्षण इतना गहरा है कि एक ही समय में सबकी आँखें उन पर ठहर जाती हैं।

4. चौथा भाव: जो चोर होता है वह आँख से दिखने वाली वस्तु चुराता है – लेकिन इन्होंने स्वयं आँखें ही चुरा लीं

साधारण चोर किसी वस्तु या धन को चुराता है जो आँखों से देखा जा सकता है। परंतु यहाँ श्रीराम ने खुद उन आँखों को ही चुरा लिया जो उन्हें देख रही थीं। उनका सौंदर्य और आकर्षण ऐसा है कि सभी की दृष्टि उन्हीं पर केंद्रित हो जाती है, मानो उनकी आँखें ही उनके पास चली गई हों। यह श्रीराम के आकर्षण और उनकी दिव्यता का प्रतीक है।

5. पाँचवाँ भाव: जो चोर होता है प्रायः सुंदर नहीं होता और ये तो सबसे सुंदर हैं

साधारण चोर अकसर आकर्षक या सुंदर नहीं होता, क्योंकि वह छिपकर कार्य करता है। लेकिन यहाँ तुलसीदासजी ने श्रीराम को “सुंदर स्यामल गौर तन” कहा है। उनके साँवले और गोरे रंग की सुंदरता ऐसी है कि वह सभी का मन मोह लेते हैं। उनकी सौम्यता और सुंदरता उनके इस अद्वितीय चोर स्वरूप को और भी विशेष बनाती है।

6. छठा भाव: चोर प्रायः बड़े अवस्था के होकर चोरी करते हैं – और ये किशोर अवस्था में ही ऐसे पके हुए चोर हैं; जाने बड़े होकर क्या करेंगे?

चोरी का कार्य करने वाले लोग अक्सर परिपक्व उम्र के होते हैं, लेकिन यहाँ श्रीराम किशोर अवस्था में ही इतने कुशल चोर हैं कि सबका मन मोह लेते हैं। किशोर अवस्था में ही उनका व्यक्तित्व इतना आकर्षक और प्रभावशाली है कि लोग उन्हें देखकर अपने हृदय की सारी इच्छाएँ उन पर न्यौछावर कर देते हैं। यह श्रीराम के चिरयुवा और दिव्य स्वरूप का अद्भुत चित्रण है।

7. सातवाँ भाव: कहा जाता है की सबसे अच्छा चोर वह होता है जो आँखों से काजल चुरा ले – लेकिन ये ऐसे चोर हैं की आँखें ही चुरा लेते हैं |

एक प्रसिद्ध कहावत है कि जो चोर आँखों का काजल चुरा ले, वही सच्चा चोर है। लेकिन यहाँ श्रीराम ने तो काजल की जगह आँखों को ही चुरा लिया। वह इतने अद्भुत चोर हैं कि काजल तक नहीं छोड़ा, बल्कि समूची दृष्टि को अपने में समाहित कर लिया। तुलसीदासजी का यह बिम्ब श्रीराम के आकर्षण को एक अनोखे ढंग से व्यक्त करता है।

8. आठवाँ भाव: चोर छिपकर रात के समय राजा के नौकरों से डरता हुआ चोरी करता है और ये ऐसे निपुण हैं की भरी सभा में दिन में ही राजाओं के समाज में निडर हो चोरी कर लेते हैं

एक चोर हमेशा अंधेरे में, छिपकर चोरी करता है, परंतु यहाँ श्रीराम ने राजसभा के बीच दिन में ही, निडर होकर सभी का मन चुरा लिया। यह दिखाता है कि उनका सौंदर्य और आकर्षण ऐसा है कि उसे छिपाने की आवश्यकता नहीं। वह अपने आप में इतने अद्भुत हैं कि लोगों की दृष्टि अपने आप उनके पास खिंच जाती है।

9. नवा भाव: जिन आँखों से देखकर चोर पकड़ा जाता है – ये उन आँखों को ही चुरा लेते हैं, अब कौन देखे और कौन पकड़े ?

आम चोर को पकड़ने के लिए आँखों की आवश्यकता होती है, लेकिन यहाँ श्रीराम ने उन्हीं आँखों को चुरा लिया जो उन्हें देख रही थीं। अब कोई उन्हें पकड़े भी कैसे, जब सबकी दृष्टि उन्हीं में लीन हो गई। यह भाव उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाता है, जो हर दृष्टि को अपने में समाहित कर लेता है।

सरसरी दृष्टि से पढ़ने पर ये अर्थ विचित्रता हमें दिखाई ही नहीं पड़ती | बहुत गहन विचार करने पर ही ये रहस्य उद्घाटित हो पाते हैं |

निष्कर्ष

श्रीरामचरितमानस का यह अद्भुत प्रसंग हमें बताता है कि तुलसीदासजी ने कैसे हर शब्द में गहरे अर्थ समेटे हैं। “चोर” शब्द का यह विश्लेषण हमें श्रीराम के चमत्कारी और दिव्य स्वरूप को समझने में मदद करता है। जो लोग बिना गहरे अध्ययन के इस ग्रंथ को समझने का प्रयास करते हैं, वे इस अद्वितीयता को पकड़ नहीं सकते। श्रीराम का यह “चोर” स्वरूप उनके सौंदर्य, आकर्षण, और दिव्यता का प्रतीक है।

तुलसीदासजी का यह वर्णन हमें यह भी सिखाता है कि श्रीराम के चरित्र को समझने के लिए केवल सतही दृष्टि नहीं, बल्कि गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है। श्रीराम का यह अद्वितीय चित्रण हर पाठक को उनकी दिव्यता में खो जाने पर मजबूर कर देता है। उनका आकर्षण, उनकी करुणा, और उनका चिरयुवा व्यक्तित्व ही उन्हें इस “विश्व बिलोचन चोर” की संज्ञा प्रदान करता है।

इस प्रकार, यह प्रसंग हमें श्रीराम के चरित्र की महानता और तुलसीदासजी की काव्य कुशलता का परिचय कराता है, जो एक शब्द में सम्पूर्ण अर्थ समेटने की अद्वितीय क्षमता रखते हैं।