रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण और अन्य कई भारतीय शास्त्रों में महर्षि वामदेव का नाम कई जगहों पर आता है। यहाँ हम सबसे पहले उन संदर्भों का जिक्र करेंगे, जो वामदेव ऋषि से जुड़े नहीं हैं, इसके बाद हम उन मुख्य संदर्भों पर ध्यान देंगे, जो वामदेव ऋषि के जीवन और शिक्षाओं को प्रस्तुत करते हैं।
अप्रासंगिक संदर्भ: वामदेव का अन्यथा उपयोग
ब्रह्माण्ड पुराण में वामदेव नाम का उल्लेख एक हाथी के रूप में किया गया है, जो महर्षि वामदेव से भिन्न है। यहाँ यह स्पष्ट होता है कि वामदेव नाम का उपयोग अन्य जगहों पर भी विभिन्न अर्थों में किया गया है। अतः वामदेव का हर उल्लेख महर्षि वामदेव के संदर्भ में नहीं लिया जा सकता है।
ब्रह्माण्ड पुराण, मध्य भाग, अध्याय 7 श्लोक 339
इसी तरह महाभारत के सभा पर्व में वामदेव नामक एक राजा का वर्णन है जिसे उत्तर दिग्विजय के समय अर्जुन ने परास्त किया था | जरासंध वध के बाद अर्जुन आदि भाइयों के दिग्विजय के वर्णन में यह आया है –
महाभारत सभा पर्व अध्याय 27 श्लोक 11
इसके अतिरिक्त भगवान शिव का भी एक नाम वामदेव है |
स्पष्ट है इन वामदेवों की यहाँ चर्चा नहीं है | यहाँ हम महर्षि वामदेव पर विचार करने के इच्छुक हैं |
रामचरितमानस में महर्षि वामदेव का उल्लेख
रामचरितमानस में महर्षि वामदेव का उल्लेख सात बार हुआ है। तुलसीदास जी ने उनके नाम का उपयोग एक प्रखर और ज्ञानवान ऋषि के रूप में किया है, जो भगवान श्रीराम के प्रति अपने समर्पण और मार्गदर्शन के लिए जाने जाते हैं। विशेष रूप से बाल काण्ड में वामदेव को गुरु वशिष्ठ और अन्य ऋषियों के साथ देखा जा सकता है, जहाँ वे सबको गाधिसुत विश्वामित्र जी की कथा सुनाते हैं | हैं।
बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस ।
दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस ॥
बाल काण्ड दोहा 320
बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि ।
आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि ॥
बाल काण्ड दोहा 330
बोले बामदेउ सब साँची।
कीरति कलित लोक तिहुँ माची।।
बाल काण्ड 359/7
बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी।
बहुरि गाधिसुत कथा बखानी।।
बाल काण्ड 361/1
बामदेउ बसिष्ठ तब आए |
सचिव महाजन सकल बोलाए ||
अयोध्या काण्ड 169/7
कौसिक बामदेव जाबाली |
पुरजन परिजन सचिव सुचाली ||
अयोध्या काण्ड 319/6
बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक |
देखे प्रभु महि धरि धनु सायक ||
उत्तर काण्ड 5/2
वाल्मीकि रामायण में वामदेव का उल्लेख
वाल्मीकि रामायण में वामदेव का उल्लेख ग्यारह बार हुआ है। वाल्मीकि जी ने वामदेव को एक अद्वितीय दृष्टि रखने वाले ऋषि के रूप में प्रस्तुत किया है, जो राजा दशरथ और उनके पुत्रों को नीति और धर्म का उपदेश देते हैं। विशेष रूप से वामदेव का उल्लेख अयोध्या काण्ड में है, जहाँ वे राजा दशरथ के कुलगुरु के रूप में दिखाई देते हैं और श्रीराम के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1. वामदेव – दशरथ के परामर्शदाता मंत्री
बाल काण्ड सर्ग 7
2. दशरथ का वामदेव से पुत्र कामेष्टि यज्ञ के लिए परामर्श माँगना
बाल काण्ड सर्ग 8
3. ऋष्यश्रृंग से सहमति के बाद वामदेव जी को बुलवाया
बाल काण्ड सर्ग 12
4. दशरथ ने इनसे मिथिला जाने की आज्ञा मांगी
बाल काण्ड सर्ग 68
5. दशरथ ने इनको भी मिथिला आगे आगे चलने को कहा
बाल काण्ड सर्ग 69
6. दशरथ ने इन्हे युवराज पद के अभिषेक के लिए कहा
अयोध्या काण्ड सर्ग 3
7. इन्होने वशिष्ठ से दशरथ मृत्यु पश्चात दूसरे राजा को अभिषिक्त करने को कहा
अयोध्या काण्ड सर्ग 67
8. ये भरतजी और राम पादुकाओं के साथ वापस अयोध्या आ गए
अयोध्या काण्ड सर्ग 113
9. इन्होने रामजी के राज्याभिषेक में सहयोग दिया
युद्ध काण्ड सर्ग 128
10. शम्बूक वध प्रकरण में सभा में उनकी उपस्थिति
उत्तर काण्ड सर्ग 74
11. रामजी ने अश्वमेध यज्ञ से पहले उनसे सलाह ली
उत्तर काण्ड सर्ग 91
पद्म पुराण में वामदेव का वर्णन
पद्म पुराण उत्तर खण्ड अध्याय 254 में वामदेव का उल्लेख पार्वतीजी के गुरु के रूप में हुआ है जिन्होंने पार्वतीजी को विष्णु सहस्रनाम का उपदेश दिया था | पर भोजन में विलम्ब होने के कारण शिवजी ने पार्वतीजी को रामनाम के स्मरण का सलाह दिया –
महाभारत में वामदेव का योगदान
महाभारत में भी वामदेव का उल्लेख सात बार किया गया है | महाभारत में भी रामोपाख्यान पर्व आया है और उस में भी इनका वर्णन वाल्मीकि रामायण की तरह ही किया गया है | अन्य प्रसंगों में भी उनका नाम आया है –
1. वामदेव उपाख्यान
वन पर्व में अध्याय 192 में विस्तार से इनकी एक लम्बी कथा आयी है | सम्पूर्ण अध्याय में परीक्षित पुत्रों द्वारा लौटाने तथा अंततः वामदेव द्वारा अपने अश्व पुनः प्राप्त कर लेने की कथा आयी है | विस्तार भय से वह कथा हम यहां नहीं दे रहे हैं | पाठकों के सुविधार्थ हमने सारे ग्रंथों के डाऊनलोड लिंक लेख के अंत में दे दिया है | वहाँ जाकर पाठक स्वयं पढ़ सकते हैं |
इस प्रसंग का उल्लेख आदि पर्व में भी आया है जहां पूरे महाभारत की कथा संक्षेप में कही गयी है –
इन दो जगहों को मिला कर दो बार वामदेव का उल्लेख हो गया |
2. ब्रह्मा जी के सभा में
सभा पर्व अध्याय 7
3. रामोपाख्यान पर्व – भारत जी के साथ चलने वाले
वन पर्व अध्याय 277
4. रामोपाख्यान पर्व – राम राज्याभिषेक कराने वाले
वन पर्व अध्याय 291
5. संधि प्रस्ताव ले जाते समय श्री कृष्ण से भेंट करना
उद्योग पर्व अध्याय
6. राजके धर्मपूर्वक आचारके विषय में वामदेव जी वसुमना को उपदेश की कथा
शांति पर्व अध्याय 92-94 | यह कथा भीष्म जी ने युधिष्ठिर को सुनाई –
वायु पुराण में वामदेव का उल्लेख
वायु पुराण के अध्याय 65 में वामदेव का वर्णन एक परम ज्ञानी ऋषि के रूप में किया गया है। वायु पुराण के अनुसार, वामदेव ने ब्रह्मज्ञान और आत्मज्ञान के विषय में गहन शोध किया। उनकी शिक्षाओं का प्रभाव उनकी मृत्यु के बाद भी समाज पर देखा गया।
ऋग्वेद के चौथे मंडल में कुल अट्ठावन सूक्त हैं जिनमें 42,43,44 – इन तीन सूक्तों के ऋषि दूसरे हैं बांकी 1 से 41 तक और 45 से 58 तक 55 सूत्रों के मन्त्रों के ऋषि महर्षि वामदेव ही हैं |
इनकी महत्ता इससे भी सिद्ध होती है कि ब्रह्मा जी के संतान थे अंगिरा, अंगिरा के पुत्र हुए बृहस्पति और बृहस्पति के ही पुत्र थे अंगिरस अथर्व जो की वामदेव के पिता थे !
मनु स्मृति में वामदेव का महात्म्य
मनु स्मृति अध्याय 10 श्लोक 106 में वामदेव का उल्लेख धर्म अधर्म के विशेष ज्ञाता के रूप में हुआ है | एक बार भूख से पीड़ित होने के कारण उन्हें कुत्ते का मांस खाना पड़ा लेकिन उससे भी वह पापी नहीं हुए | यहाँ आपद्धर्म बताया गया है और यह नहीं कहा गया है की हमेशा मांस खाते रहना चाहिए | विपत्ति काल में प्राण रक्षा के लिए मात्र शास्त्र इसका अनुमोदन करते हैं |
निष्कर्ष
महर्षि वामदेव का जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सत्य, धर्म और ज्ञान के प्रति निष्ठा ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। विभिन्न शास्त्रों में उनके जीवन के प्रसंग और शिक्षाएँ हमें उनके दिव्य व्यक्तित्व और गहन आध्यात्मिकता की झलक देते हैं। वामदेव का योगदान भारतीय संस्कृति और धर्म में अद्वितीय है, जो हमें जीवन के कठिन मार्गों में मार्गदर्शन देने के लिए सदैव प्रेरित करता रहेगा।
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