रामचरितमानस, तुलसीदासजी द्वारा रचित अद्वितीय महाकाव्य है, जिसमें भगवान राम के जीवन और उनके आदर्शों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ सदियों से भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन का अभिन्न हिस्सा रहा है। आज हम रामचरितमानस के दुर्लभ संस्करणों से बालकाण्ड के कुछ ऐसे पंक्तियाँ आपके सामने प्रस्तुत करेंगे जो आपने आज तक कभी नहीं देखे होंगे। यह तीन ऐसी चौपाइयाँ हैं, जो कुछ लोकप्रिय संस्करणों में नहीं मिलतीं। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ, और इसके पीछे के ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों को समझने का प्रयास करेंगे।
इस विषय को समझने के लिए हमारा यह वीडियो अवश्य देखें –
1. पांडुलिपियों का विविधता में योगदान
रामचरितमानस की रचना के समय तुलसीदासजी ने इस ग्रंथ को सबसे पहले स्थानीय समाज और संस्कारों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत किया था। उस समय लेखन की प्रक्रिया में पांडुलिपियों का सहारा लिया जाता था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर पांडुलिपियों की प्रतिलिपि बनाने की प्रक्रिया में समय, स्थान और समाज के अनुसार मामूली परिवर्तन होते गए। कई बार, प्रतिलिपिकार ने अनजाने में या जानबूझकर मूल पाठ में परिवर्तन कर दिया। जब इन पांडुलिपियों का संग्रह और वितरण अलग-अलग क्षेत्रों में हुआ, तो धीरे-धीरे कई प्रतिलिपियों में छोटे-मोटे अंतर आ गए। यह एक मुख्य कारण हो सकता है कि कई चौपाइयाँ बाद के संस्करणों में गायब पाई गईं।
2. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
रामचरितमानस का पाठ एक धार्मिक कृति होने के कारण समाज में विशेष प्रतिष्ठा रखता है। इस ग्रंथ के विभिन्न संस्करण अलग-अलग समाजों और परंपराओं में प्रचलित रहे हैं। कई बार, किसी समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों के अनुरूप ग्रंथ में कुछ परिवर्तन किए गए ताकि वह समाज इसे आसानी से स्वीकार सके। उदाहरण के लिए, तुलसीदासजी के समय से लेकर अब तक कई समाजों ने रामचरितमानस को विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में समझा और स्वीकार किया।
इस प्रक्रिया में कई बार उन अंशों को हटा दिया गया, जिन्हें कुछ लोग अनुचित समझते थे। यह संभावना है कि अपनी अल्पज्ञता के कारण कई चौपाइयाँ कुछ धार्मिक मान्यताओं के विपरीत लगी हों, जिसके कारण उन्हें बाद में हटाया गया। ऐसे अंशों को गायब कर देना एक सामान्य प्रक्रिया बन गई थी, खासकर उस समय जब धार्मिक ग्रंथों को समाज में व्यापक रूप से स्वीकार कराना महत्वपूर्ण था।
3. क्षेत्रीय संस्करणों का प्रचलन
तुलसीदासजी की रचना का प्रचार-प्रसार कई भौगोलिक क्षेत्रों में हुआ, जहां की बोलचाल, व्याकरण और भाषा शैली में भिन्नता थी। क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अनुसार रामचरितमानस का अनुवाद हुआ, जिसके परिणामस्वरूप मूल पंक्तियों में कभी-कभी बड़े बदलाव आ गए। बालकाण्ड की गुमशुदा चौपाइयों का गायब होना एक क्षेत्रीय प्रभाव का परिणाम भी हो सकता है। संभव है कि इन चौपाइयों का अस्तित्व उन प्रारंभिक प्रतियों में हो, जो सिर्फ तुलसीदासजी के अपने क्षेत्र में सीमित थीं। इसके बाद, जब ग्रंथ का अन्य क्षेत्रों में प्रसार हुआ, तो वहाँ की सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप ग्रंथ में संशोधन कर दिए गए।
4. अज्ञात प्रतिलिपिकारों द्वारा परिवर्तन
रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ की रचना के कुछ वर्षों बाद, इसके प्रति श्रद्धा और समर्पण के साथ-साथ सामाजिक स्वीकृति की भी चिंता उत्पन्न होने लगी। तुलसीदासजी के बाद, कई प्रतिलिपिकारों ने इस ग्रंथ का अध्ययन किया और समय के साथ अपने दृष्टिकोण से आवश्यक संशोधन किए। दुर्भाग्यवश, इस प्रक्रिया में बालकाण्ड की उन तीन चौपाइयों को अनजाने में हटा दिया गया या बदला गया। इसके अलावा, तत्कालीन प्रतिलिपिकारों ने तुलसीदासजी के संदेश में थोड़ा परिवर्तन किया ताकि वह अधिक व्यापक हो सके। इन परिवर्तनों का प्रभाव बाद के संस्करणों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है, और यह भी एक कारण हो सकता है कि बालकाण्ड की ये तीन चौपाइयाँ गायब हो गईं।
5. ग्रंथ का संपादन और प्रकाशन
प्रारंभिक काल में ग्रंथों का प्रकाशन आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस के माध्यम से नहीं होता था। पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं और उनकी प्रतिलिपियाँ बनाई जाती थीं। इसके कारण मूल पाठ में कहीं न कहीं त्रुटियाँ या छूट का होना स्वाभाविक था। आज जो हमारे पास रामचरितमानस के संस्करण उपलब्ध हैं, उनमें से कई का संपादन आधुनिक युग में हुआ। विभिन्न संस्करणों के संपादकों ने अपने दृष्टिकोण और समझ के अनुसार ग्रंथ में संशोधन किया, जिसके कारण बालकाण्ड की ये तीन चौपाइयाँ कुछ संस्करणों में अनुपलब्ध हो गईं।
6. तीन गुमशुदा चौपाइयों के प्रमाण और चर्चा
अब आइए उन तीन चौपाइयों पर एक नज़र डालें, जो बालकाण्ड में थीं, परन्तु जो अब हमारे पास उपलब्ध सामान्य संस्करणों में नहीं हैं। इन चौपाइयों का उल्लेख दुर्लभ पांडुलिपियों और कुछ विद्वानों के लेखों में पाया गया है। ये चौपाइयाँ रामचरितमानस के महत्त्वपूर्ण अंश मानी जाती हैं, जो तुलसीदासजी की रचना की गहराई और भगवान राम के व्यक्तित्व के अन्य आयाम को प्रकट करती हैं।
चौपाई 1
बालकाण्ड के चौदहवें दोहे के ऊपर गोस्वामीजी ने कलियुग के कवियों को प्रणाम किया है | गोस्वामीजी का विचार था की उनकी कविता संस्कृत में नहीं है तो पता नहीं वह उतनी आदृत हो या न हो | अतएव उन्होंने कलियुग के कवियों से, जिन्होंने लोकभाषा में रामकथा लिखी, उनसे आशीर्वाद माँगा | देखिये गीताप्रेस से उनके शब्द –
रामचरितमानस पर गीताप्रेस से सात खण्डों में मानस पीयूष नामक टीका निकलती है | इसके सम्पादक अंजनी नंदन शरण थे | इसमें दर्जनों प्राचीन टीकाकारों और मानस मर्मज्ञों के भाव हर पंक्ति पर हैं | यह रामचरितमानस का विश्वकोश जैसा ग्रन्थ है | इसमें हर चौपाई पर प्राचीन टीकाकारों के मत भी दिए हैं | कई प्राचीन टीकाओं से मानस के प्राचीन पाठों पर भी विचार किया गया है |
वहाँ पर इस चौदहवें दोहे के ऊपर एक चौपाई उन्होंने प्राचीन टीकाओं से शोध कर बताया है जो गीताप्रेस वाले संस्करण में नहीं मिलता है –
यह चौपाई ‘करहु अनुग्रह अस जिय जानी | बिमल जसहिं अनुहरइ सुबानी ||’ गीताप्रेस वाले संस्करण में नहीं रखा गया है |
मानस पीयूषकार ने इस चौपाई के नीचे यह पाद टिप्पणी भी दी है –
चौपाई 2
रामजी के बालरूप का वर्णन गीताप्रेस वाले संस्करण में देखिये –
यहाँ बारह चौपाइयों में रामजी के बालरूप के शोभा का वर्णन किया गया है |
लेकिन रामचरितमानस के प्राचीन संस्करणों में इस प्रसंग में एक चौपाई और मिलती है जिसमें रामजी के आँखों के शोभा का वर्णन है | उदाहरणस्वरूप ज्वालाप्रसाद मिश्र जी की टीका से यह प्रसंग देखिये –
देखिये! के आस पास अखिल भारतीय विक्रम परिषद् की बैठक हुई और एक सभा का आयोजन किया गया | उस सभा के प्रधान सम्पादक प्रसिद्ध रामायणी श्री सीताराम चतुर्वेदी थे |
इन सबने अनेक मानस मर्मज्ञों से मुलाकात की और पत्र भी लिखे | और भी उन सबके विचारों पर मंथन करने के लिए एक बैठक की गयी | उस बैठक में अट्ठारह निर्णय लिए गए | वो सारे निर्णय हम आपको नहीं बताना चाहेंगे, क्योंकि कुछ निर्णयों से आपको ठेस लग सकती है | लेकिन उस सभा का एक निर्णय यह था कि रामजी की आँखों की शोभा वाले इस चौपाई को संगृहीत कर लिया जाए क्योंकि तुलसीदासजी के गीतावली में रामजी की आँखों के शोभा का वर्णन है |
समस्त विद्वानों के मत को ध्यान में रख कर अखिल भारतीय विक्रम परिषद् ने मानस का संशोधित संस्करण निकाला |
और इसलिए अखिल भारतीय विक्रम परिषद् से संशोधित रामचरितमानस के संस्करण में इस चौपाई को संगृहीत किया गया है |
हाँ यह ध्यान दें की ज्वालाप्रसाद जी ने माला लिख दिया है जबकि पाठ भाला होना चाहिए | और कमल की बजाय जलज शुद्ध पाठ है |
चौपाई 3
यह तीसरी पंक्ति चौपाई नहीं बल्कि एक श्लोक है | आप जानते हैं कि रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है लेकिन हर काण्ड के प्रारम्भ में जो श्लोक हैं वो संस्कृत में हैं |
बालकाण्ड के मंगलचरण का सातवाँ श्लोक प्रचलित संस्करणों में यह है –
शुद्ध पाठ यही है लेकिन उपरोक्त अखिल भारतीय विक्रम परिषद् के रामचरितमानस में महंत मोहनदास की पोथी का वर्णन किया गया है जहाँ इसके बदले में यह श्लोक मिलता है –
चूँकि यह श्लोक किसी और संस्करण में नहीं मिलता इसलिए अन्य विद्वान् इसे क्षेपक ही मानते हैं और शुद्ध पाठ वही है जो उपलब्ध होता है |
7. विभिन्न संस्करणों का वितरण
इस लेख के अंत में, हम अपने पाठकों के लिए रामचरितमानस के विभिन्न संस्करणों की डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। इनमें से कुछ संस्करण में बालकाण्ड की ये चौपाइयाँ प्राप्त हो सकती हैं। यह हमारे धार्मिक ग्रंथों का सम्मान और उन्हें संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
8. निष्कर्ष
रामचरितमानस के गुमशुदा चौपाइयाँ एक अनसुलझा रहस्य हैं, जो आज भी विद्वानों और भक्तों के बीच चर्चा का विषय हैं। इस विषय पर अध्ययन और शोध जारी हैं, और हमें आशा है कि भविष्य में हमें इस रहस्य का सही समाधान मिल सकेगा। धार्मिक ग्रंथों का संरक्षण हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस प्रकार के ऐतिहासिक प्रमाणों को समझना और उनका सम्मान करना आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इन अमूल्य ग्रंथों से प्रेरणा ले सकें और इनकी वास्तविकता का अनुभव कर सकें। यदि आप भी इस विषय में रुचि रखते हैं, तो दिए गए लिंक से रामचरितमानस के विभिन्न संस्करणों को डाउनलोड करें और इस रहस्य का गहराई से अध्ययन करें।