आजकल कुछ तथाकथित आधुनिक विचारधारा के लोग भगवान श्रीराम पर मांसाहारी होने का झूठा आरोप लगा रहे हैं। यह न केवल सनातन धर्म का अपमान है, बल्कि उन लोगों की संकीर्ण मानसिकता को भी उजागर करता है, जो अपनी आधी-अधूरी जानकारी के साथ महान चरित्रों पर गलत आरोप लगाने से नहीं चूकते। इस पोस्ट में हम ऐसे कुतर्कों का ध्वस्त करेंगे, और तीन ठोस प्रमाण प्रस्तुत करेंगे जो सिद्ध करते हैं कि भगवान श्रीराम शुद्ध शाकाहारी थे। इसके बाद हम वाल्मीकि रामायण के उन आठ श्लोकों का विश्लेषण करेंगे जिन्हें ये लोग अपने गलत उद्देश्य के लिए तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं।
श्रीराम के शाकाहारी होने के तीन ठोस प्रमाण
प्रमाण 1: श्रीराम का चरित्र और वैदिक धर्म
कुछ लोग जो श्रीराम पर मांसाहार का आरोप लगाते हैं, उन्हें रामायण और श्रीराम के चरित्र का वास्तविक ज्ञान नहीं है। श्रीराम का चरित्र करुणा, शुद्धता और वैदिक धर्म के प्रति प्रतिबद्धता से भरा हुआ है। वह अहिंसा के प्रतीक थे और उन्होंने सदैव धर्म और करुणा का पालन किया। उन्होंने युद्ध करने से पहले भी शान्ति के सारे उपाय किये ! ऐसे उच्च आदर्शों के पालन करने वाले श्रीराम के ऊपर मांसाहारी होने का आरोप लगाना स्वयं उन आलोचकों की दूषित मानसिकता को दर्शाता है। अगर श्रीराम मांसाहारी होते, तो क्या वह धर्म और करुणा के प्रतीक माने जाते? नहीं, बल्कि यह साफ है कि श्रीराम शाकाहारी ही थे।
प्रमाण 2: वनवास के दौरान श्रीराम का जीवन और आहार
रामजी सत्य प्रतिज्ञ हैं | उन्होंने स्वयं कहा है कि वह एक बार जो बोल देते हैं सो बोल देते हैं, वह मिथ्या नहीं होता | यह देखिये – रामो द्विर्नाभिभाषते – वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड के सर्ग 18 का श्लोक 30-
ऐसे सत्यवादी रामजी ने तीन बार प्रतिज्ञा की है कि मैं वन में मुनिकी भाँति कन्द मूल और फल का ही आहार करूंगा और इस तरह जीवन के चौदह वर्ष व्यतीत करूंगा | देखिये वाल्मीकि रामायण से प्रमाण –
वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग 20 श्लोक 29
वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग 34 श्लोक 59
वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग 54 श्लोक 16
वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट रूप से वर्णन है कि वनवास के दौरान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण केवल कंद, मूल और फल का सेवन करते थे। क्या ये लोग इतने अज्ञानी हैं कि इन श्लोकों को नहीं समझ पाते? श्रीराम का आहार शुद्ध शाकाहारी था, और उन्होंने सदा पेड़-पौधों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक भोजन का सेवन किया। वाल्मीकि रामायण के उपरोक्त श्लोकों से यह प्रमाण मिलता है कि श्रीराम मांस का सेवन नहीं करते थे। जो लोग इसके विपरीत दावा करते हैं, उन्हें शायद रामायण का ज्ञान पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता है।
वाल्मीकि रामायण के विभिन्न संस्करण आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –
प्रमाण 3: तपस्या और योग का आदर्श
श्रीराम का जीवन एक तपस्वी का जीवन था, जो योग और धर्म के सिद्धांतों के अनुसार संचालित था। तपस्वियों और योगियों के लिए मांसाहार सर्वथा निषेध है। इन तथाकथित आलोचकों को शायद इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म और योग का पालन करने वाले व्यक्ति मांसाहार से कोसों दूर रहते हैं। अगर ये लोग ध्यान से पढ़ें तो पाएंगे कि श्रीराम का जीवन तपस्या और योग के आदर्शों का प्रतीक है। जो लोग इस सच्चाई को नजरअंदाज करते हैं, वे अपनी ही संकीर्ण विचारधारा का परिचय दे रहे हैं।
अपनी आँखों से वाल्मीकि रामायण के इन श्लोकों को देख लें और छाती ठंढी कर लें –
वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड सर्ग 19 श्लोक 15-16 (यह बात शूर्पणखा ने खर से कही है)
वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड सर्ग 20 श्लोक 7-8 (यह बात रामजी ने खर के राक्षसों से कही है)
वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड सर्ग 47 श्लोक 21-24 (यह बात सीताजी ने रावण से कही है)
कुछ लोग यह अटकलें लगाते हैं कि सीताजी ने स्वर्ण मृग इसलिए लाने को कहा कि वह हिरन का मांस खाना चाहती थी | लेकिन यह बात वाल्मीकि रामायण के इन श्लोकों से बिलकुल निराधार साबित हो जाती हैं –
वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड सर्ग 43 श्लोक 10 (यह बात सीताजी ने रामजी से कही है)
वाल्मीकि रामायण किष्किंधा काण्ड सर्ग 17 श्लोक 38 (यह बात वाली ने रामजी से कही है)
वाल्मीकि रामायण के आठ विवादित श्लोकों का खंडन
अब उन आठ श्लोकों का खंडन करते हैं जिन्हें मांसाहार के समर्थन में गलत तरीके से पेश किया जाता है। हर श्लोक का सही अर्थ समझाने से ये लोग अपनी ही झूठी दलीलों में फंस जाएंगे।
दरअसल जो लोग संस्कृत की गहराइयों से अपरिचित होते हैं वही इस प्रकार के आक्षेप करते हैं | आमिष का अर्थ केवल मांस ही नहीं होता | महाभारत के वन पर्व में जब द्रौपदी का हरण करने का प्रयास करके जयद्रथ भाग रहा होता है तब अर्जुन भीम से यह कहते हैं कि जयद्रथ तो भाग गया, उसके सेना का संहार करना तो निष्फल है, हमें जयद्रथ को ढूंढना चाहिए | यहां पर यह श्लोक आया है जिसमें निरामिष शब्द आया है | आप स्वयं देख लें –
महाभारत वन पर्व अध्याय 271 श्लोक 37-38 इसमें अड़तीसवें श्लोक में अनामिष शब्द पर ध्यान दें | अनामिष का अर्थ निष्फल किया गया है |
महाभारत के विभिन्न संस्करण आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –
श्लोक 1
सबसे पहले वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग 52 श्लोक 102 उद्धृत किया जाता है |
स्पष्टीकरण: यहाँ केवल शिकार का वर्णन है | भोजन में उन्होंने कन्द मूल फल ही खाये हैं । इन लोगों ने शायद इस श्लोक को अपने तुच्छ उद्देश्यों के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। श्रीराम के जीवन की सच्चाई को जानने के लिए सतही व्याख्याओं की नहीं, बल्कि गहरी समझ की आवश्यकता है।
श्लोक 2
अगले श्लोक में चलते हैं | यह वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग 56 का श्लोक 22 है | यह अनुवाद द्वारका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी द्वारा किये गए अनुवाद से है –
लेकिन अगर आप इसी श्लोक का अनुवाद गीताप्रेस वाले संस्करण में पढ़ेंगे तो हैरान रह जायेंगे –
स्पष्टीकरण: मांस का एक अर्थ फलों का गूदा भी होता है और वही अर्थ यहाँ उपयुक्त है क्योंकि ऊपर हमने आपको रामजी के तीन प्रतिज्ञाएं बतायी हैं जिनके अनुसार रामजी ने चौदह वर्ष तक वनवास में कन्द मूल और फल खाने का वचन दिया है | रामजी के वचनबद्धता में किसी प्रकार का संदेह करना बनता ही नहीं है | इसमें मांसाहार का कोई स्थान नहीं है। जो लोग इस श्लोक को मांसाहार से जोड़ते हैं, वे खुद ही अपने तुच्छ ज्ञान का परिचय दे रहे हैं।
श्लोक 3
यह वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग 84 का श्लोक 10 है | यह अनुवाद द्वारका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी द्वारा किये गए अनुवाद से है –
इसी श्लोक को गीताप्रेस वाले संस्करण में पढ़ते हैं –
स्पष्टीकरण: इस श्लोक में उपहारों का वर्णन है, न कि मांस का। इन लोगों ने शायद इस श्लोक का सतही विश्लेषण कर लिया है, लेकिन वास्तविक अर्थ से कोसों दूर हैं।
श्लोक 4
यह वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग 96 का श्लोक 1 है –
स्पष्टीकरण: यह श्लोक श्रीराम के साधना और तपस्या के अनुकूल भोजन करने के बारे में है। जिन लोगों ने इसे मांसाहार से जोड़ने की कोशिश की है, वे गलत हैं और उन्हें रामायण के वास्तविक अध्ययन की आवश्यकता है।
श्लोक 5
अब वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड सर्ग 44 के श्लोक 27 में चलते हैं –
स्पष्टीकरण: यह श्लोक मांसाहार के बारे में कुछ भी नहीं कहता है। यह उन लोगों की कुंठित मानसिकता है जो इसका गलत अर्थ निकाल रहे हैं।
श्लोक 6
इसके आगे आक्षेप करने वाले वाल्मीकि रामायण के अरण्य काण्ड सर्ग 68 के 32-33 श्लोक को उद्धृत करते हैं | पहले द्वारका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी द्वारा किये गए अनुवाद को देखते हैं –
अब गीताप्रेस का अनुवाद देखिये –
स्पष्टीकरण: यह श्लोक पिंड दान से सम्बंधित है | धार्मिक कृत्यों में मांस की कल्पना करना व्यर्थ है | केवल वे लोग जो अधूरी जानकारी रखते हैं, इसे मांसाहार से जोड़ सकते हैं।
श्लोक 7
यह प्रसंग तो बहुत ही मधुर है | वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड सर्ग 36 श्लोक 41 में हनुमान जी सीताजी से कहते हैं –
इसके आधार पर कई लोग यह आक्षेप करते हैं कि रामजी पहले तो मांस खाते थे लेकिन अब नहीं खाते |
स्पष्टीकरण:
आइये इस विषय को समझने के लिए पहले पूरे प्रसंग को समझते हैं | इस अध्याय में सीताजी हनुमानजी से पूछती हैं कि क्या रामजी वन की विपत्तियों में भी धर्म का पालन कर पा रहे हैं? ऐसा पूछने के पीछे उनका उद्देश्य यह था कि शास्त्रों में आपत्ति काल में प्राण रक्षा के लिए विशेष परिस्थितियों में अधर्म को भी गलत नहीं कहा गया है | देखिये वाल्मीकि रामायण में सीताजी के ये वचन –
इसीलिए हनुमान जी इसके उत्तर में कहते हैं कि रामजी विपत्ति के समय में भी धर्म का त्याग नहीं करते और वो वन में भी मांस भक्षण नहीं करते क्योंकि –
रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ । मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ ॥
रामचरितमानस बालकाण्ड 231/5
रामचरितमानस के विभिन्न संस्करण आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –
श्रीराम का जीवन शुद्ध शाकाहारी और तपस्वी जीवन का प्रतीक है। इस श्लोक को मांसाहार से जोड़ना सरासर गलत है।
श्लोक 8
अंतिम प्रमाण स्वरुप उत्तरकाण्ड के बयालीसवें अध्याय के श्लोक 18 और 19 को उद्धृत किया जाता है | रामजी के राजा बन जाने के पश्चात के इस प्रसंग में सेवक रामजी को मांस लाकर देते हैं | पहले द्वारका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी द्वारा किये गए अनुवाद को देखते हैं –
अब गीताप्रेस का अनुवाद देखिये –
स्पष्टीकरण: यहाँ पर भी मांस का अर्थ गीताप्रेस वालों ने राजोचित भोग्य पदार्थ कहा है | यह श्लोक उन लोगों की मानसिकता का परिचय देता है जो बिना संदर्भ के इसका गलत अर्थ लगाते हैं।
शाकाहारी भोजन भी मांस
दरअसल शास्त्रों की गहनता को न समझने के कारण ही ऐसे कुतर्क उठते हैं | अब हम पद्म पुराण से आपको एक प्रकरण दिखाते हैं जहां शाकाहारी भोजन को भी मांस कहा गया है | पद्म पुराण आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं |
पद्म पुराण के उत्तर खंड के 94वें अध्याय में कार्तिक व्रत का वर्णन आया है | वहाँ कहा गया है व्रत वाले दिन मसूर का दाल और जौ भी मांस ही है –
निष्कर्ष
जो लोग श्रीराम पर मांसाहारी होने का आरोप लगाते हैं, वे स्वयं की अधूरी जानकारी और कुंठित सोच का प्रदर्शन कर रहे हैं। श्रीराम का चरित्र वैदिक धर्म, अहिंसा और शाकाहार का प्रतीक है। जो लोग इस पर सवाल उठाते हैं, वे या तो रामायण के गूढ़ अर्थ से अनभिज्ञ हैं या फिर जानबूझकर सनातन धर्म को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे कुतर्कों और झूठे आरोपों का जवाब सच्चाई से देना हमारी जिम्मेदारी है। श्रीराम की महिमा का सम्मान करना और उनके चरित्र की पवित्रता को बनाए रखना हर सनातनी का कर्तव्य है।
जो लोग सच्चाई को झुठलाकर रामायण की गलत व्याख्या कर रहे हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि सत्य सदैव विजय पाता है।