SH37 Manas Manthan Take 2

तुलसी के प्रति अन्याय ? मानस मंथन की रामचरितमानस के प्राचीन व्याख्याकारों को चुनौती

भूमिका
रामचरितमानस, तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का अमूल्य धरोहर है। यह महाकाव्य न केवल रामायण की कथा को सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत करता है, बल्कि धर्म, नीति और आध्यात्मिक ज्ञान का स्त्रोत भी है। “मानस मंथन”, जो शोध और आलोचना के दृष्टिकोण से लिखा गया है, रामचरितमानस की पारंपरिक व्याख्याओं पर सवाल उठाता है और कई चौपाइयों और छंदों की वैकल्पिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

मानस मंथनकार श्री तनसुखराम गुप्त जी का कहना है की आजतक के प्राचीन व्याख्याकारों ने तुलसीदासजी पर अन्याय किया है | उनके मतानुसार आजतक के जितने टीकाकार थे उन्होंने कई चौपाइयों के ऐसे अर्थ किये हैं जो उचित नहीं हैं | उन्होंने अनेक कोष ग्रन्थ से कुछ शब्दों के वैकल्पिक अर्थों की खोज की है | यह ग्रन्थ हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या गोस्वामी तुलसीदासजी के भक्त ह्रदय का भाव समझने के लिए हमें परम्पराओं को देखना होगा या कोष ग्रन्थ को ? इस प्रबंध में हम रामचरितमानस के तीन चौपाइयों पर मानस मंथनकार के वैकल्पिक दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करेंगे |

वैसे इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –

Manas Manthan Challenges the Traditional Commentators of Ramcharitmanas claiming that Tulsidas have been unjustly interpreted

मानस मंथन नाम के अन्य ग्रन्थ

यहाँ हम यह बता दें कि मानस मंथन नाम के कई अन्य ग्रन्थ प्रचलित हैं | जैसे समुद्र मंथन से अमृत मिला था वैसे ही मानस मंथन में रामचरितमानस के गूढ़ रहस्यों की बात की गयी है | यहाँ हम pdf format में उपलब्ध मानस मंथन आपके साथ साझा कर रहे हैं –

मानस मंथन, पुष्प 1 (रामकिंकर उपाध्याय)

मानस मंथन, पुष्प 2 (रामकिंकर उपाध्याय)


मानस मंथन, पुष्प 4 (रामकिंकर उपाध्याय)


मानस मंथन (तुलसी के प्रति अन्याय) – श्री तनसुखराम गुप्त


मानस मंथन – डॉ स्वामीनाथ शर्मा


मानस मंथन – डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र

1. चौपाई 1: शिव पार्वती का श्री राम से सम्बन्ध

रामचरितमानस से छंद:

“सेवक स्वामि सखा सिय पी के।

हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके।।”

बालकाण्ड 15/4

पारम्परिक व्याख्या:
इस चौपाई में यह कहा गया है कि शिव पार्वती रामजी के सेवक स्वामी और सखा हैं और तुलसीदासजी के निश्छल भाव से हित करने वाले हैं |

मानस मंथन के दृष्टिकोण:
मानस मंथनकार के अनुसार एक व्यक्ति किसी का सेवक स्वामी और सखा तीनों नहीं हो सकता | इसलिए उन्होंने कहा है की स्वामी का अर्थ ये लेना है की जिससे स्व-अपनापन मिलता है |

Meaning of sewak swami sakha siy piy ke as per Manas Manthan

2. चौपाई 2: चार प्रकार के रामभक्त

रामचरितमानस से चौपाई:
राम भगत जग चारि प्रकारा ।
सुकृती चारिउ अनघ उदारा ।।

बालकाण्ड 22/6

पारम्परिक व्याख्या:
रामभक्त चार प्रकार के होते हैं (आर्त्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ग्यानी) | ये चारों भक्त सुकृति, निष्पाप और उदार होते हैं |

यह अर्थ भगवद्गीता के अनुकूल है क्योंकि उसके सप्तम अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है –

चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन |
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ || गीता 7/16 ||

हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पवित्र लोग मेरी भक्ति में लीन रहते हैं: आर्त अर्थात पीड़ित, ज्ञान की जिज्ञासा रखने वाले जिज्ञासु, संसार के स्वामित्व की अभिलाषा रखने वाले अर्थार्थी और जो परमज्ञान में स्थित ज्ञानी हैं।

मानस मंथन के दृष्टिकोण:
मानस मंथनकार के अनुसार यहाँ चारों भक्त के बारे में स्वयं तुलसीदास बता रहे हैं इसलिए गीता में जाने की आवश्यकता नहीं है | उन्होंने मानक हिंदी कोष आदि से शब्दों का अर्थ खोजा है |
उनके अनुसार चार भक्त हैं –
सुकृति – पुण्यवान, भाग्यशाली, बुद्धिमान
चारिउ – चारि भी – अर्थात शुभाचरण करने वाला
अनघ – निष्पाप
उदार – जो दूसरों के प्रगति से जले न

3. चौपाई 3: तीर्थ कैसे चले गए ?

रामचरितमानस से चौपाई:
“जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं ।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ॥”
बालकाण्ड 34/6

पारम्परिक व्याख्या:
जिस दिन रामजी का जन्मदिवस होता है उस दिन सारे तीर्थ अयोध्या चले आते हैं |

मानस मंथन के दृष्टिकोण:
मानस मंथन इस श्लोक पर गहराई से विचार करता है और कहता है कि आखिर तीर्थ कैसे चल सकते हैं क्योंकि वह मनुष्य तो हैं नहीं ! कोष ग्रंथों और कौटिल्य अर्थशास्त्र में अठारह तीर्थों का वर्णन है जो राज्य के उच्च पदाधिकारी होते हैं | मानस मंथनकार का कहना है कि वो अठारह तीर्थ अर्थात उच्च पदाधिकारी रामजी के जन्मदिवस पर अयोध्या चले आते हैं |

निष्कर्ष

रामचरितमानस भारतीय धर्म, नीति और आस्था का एक पवित्र ग्रंथ है, और इसमें श्रीराम के चरित्र को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं, मानस मंथन इसे एक आलोचनात्मक दृष्टि से देखता है और पारंपरिक व्याख्याओं को चुनौती देता है। यह हमें यह सिखाता है कि हर श्लोक का एक गहन अर्थ हो सकता है और हर व्याख्या को पुनर्विचार की आवश्यकता होती है।

विचारणीय प्रश्न

  1. एक संत के साथ न्याय या एक महाकाव्य का विकृतीकरण—आखिर मानस मंथन क्या दे रहा है?
  2. क्या परंपरा सचमुच दोषपूर्ण है, या मानस मंथन अपने दावों में अति कर रहा है?
  3. क्या केवल शब्द रामचरितमानस की आत्मा को पकड़ सकते हैं?
  4. जब एक अनुवाद न्याय का वादा करता है लेकिन हमें भ्रमित करता है, तो क्या यह प्रगति है?
  5. क्या मानस मंथन तुलसीदास के बारे में अधिक बताता है या लेखक के अहंकार के बारे में?