Brahma Ji Ki Wapsi Ramcharitmanas Rahasya

मानस में ब्रह्मा जी की विचित्र वापसी का रहस्य: एक अभिनव खुलासा

प्रस्तावना

रामचरितमानस के अद्भुत प्रसंगों में एक रहस्यमय घटना है, जिसमें रावण के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी और अन्य देवगण ब्रह्माजी की शरण में जाते हैं। वहाँ भगवान शिव स्वयं भी उपस्थित होते हैं। सब मिलकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं और उन्हें श्रीराम के रूप में अवतार लेने का आग्रह करते हैं। जब विष्णु भगवान अवतार लेने का आश्वासन देते हैं, तो सभी देवता प्रसन्न होकर अपने-अपने स्थानों को लौट जाते हैं। यहाँ तक कि स्वयं ब्रह्माजी भी अपने धाम को लौट जाते हैं, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि शिवजी कहीं नहीं जाते।

यह घटना साधारणतः नजरअंदाज हो सकती है, लेकिन अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह एक बड़ी पहेली बन जाती है। इस प्रसंग का कोई स्पष्ट समाधान रामचरितमानस की वर्तमान टीकाओं में नहीं मिलता। आखिरकार, ब्रह्माजी का पुनः गमन और शिवजी का वहाँ रुकना – इसका क्या अर्थ है? जब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास ही गए हैं तो फिर देवताओं का लौटना तो बनता है लेकिन ब्रह्मा जी का लौटना कैसे हो सकता है? आखिर वो स्वयं कहाँ लौट गए ? और शिवजी क्यों नहीं लौटे ? यही प्रश्न इस ब्लॉग पोस्ट का आधार बनेगा, जिसमें हम इस रहस्य पर विचार करेंगे और इस विषय में कुछ दुर्लभ जानकारी को भी आपके सामने लाएंगे, जिसका समाधान भी हम शास्त्र प्रमाणों के आधार पर सिद्ध करेंगे।

इस विषय को समझने के लिए हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –

भूमिका

यह उस समय की घटना है जब रावण के अत्याचार से पृथ्वी पीड़ित हो जाती है | पृथ्वी देवताओं सहित ब्रह्मा जी के पास जाती है | गीताप्रेस वाली प्रति में यह प्रसंग दोहा 184 के पास आया है |

रावण के अत्याचारों से पीड़ित पृथ्वी का दुख

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा । जे लंपट परधन परदारा ॥

मानहिं मातु पिता नहिं देवा । साधुन्ह सन करवावहिं सेवा ॥१॥

तुलसीदास जी इस छंद में बताते हैं कि रावण के पापों के कारण अधर्म बढ़ गया है। लोग अपने माता-पिता का आदर नहीं करते और परधन एवं परस्त्री को अपमानित करते हैं। साधुओं से सेवा करवाते हैं और धर्म का उल्लंघन कर रहे हैं। ऐसे में धर्म की गिरावट देखकर पृथ्वी माता अत्यंत व्यथित हो उठती हैं।

पृथ्वी का संताप और उसकी व्यथा

अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥

गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही । जस मोहि गरुअ एक परद्रोही ॥

पृथ्वी माता, जो सभी पापों को सहन करती आई हैं, अब रावण के अत्याचारों से इतनी व्यथित हो चुकी हैं कि वे इस बोझ को सहन नहीं कर पा रही हैं। अन्याय और अधर्म का भार उनके लिए असहनीय हो गया है।

देवताओं का ब्रह्माजी के पास जाना

सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका ।

सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका ॥

सभी देवता, मुनि, गंधर्व, और पृथ्वी माता ब्रह्माजी के पास जाते हैं और उनसे अपनी व्यथा प्रकट करते हैं। सभी अत्यंत भयभीत और शोकाकुल हैं और भगवान विष्णु से सहायता की याचना करने का उपाय खोजते हैं।

विष्णु अवतार का आश्वासन

बैठे सुर सब करहिं बिचारा । कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा ॥

देवगण इस पर विचार करते हैं कि भगवान विष्णु को किस प्रकार से पुकारा जाए। कुछ देवता सुझाव देते हैं कि भगवान वैकुंठ में हैं, तो कुछ कहते हैं कि वे समुद्र में निवास करते हैं।

शिवजी का रहस्यमय कथन

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥

भगवान शिव बताते हैं कि भगवान हरि सर्वत्र व्यापक हैं और भक्ति और प्रेम के द्वारा प्रकट होते हैं। इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि शिवजी का भक्ति के प्रति दृढ़ विश्वास है और यह भी संकेत मिलता है कि ईश्वर की कृपा प्रेम और श्रद्धा से ही प्राप्त होती है। देवताओं में से कोई कहता है की वैकुण्ठ चलें और कोई कहता है क्षीर सागर चलें | शिव जी के इस कथन से स्पष्ट होता है कि वो लोग वैकुण्ठ या क्षीर सागर को नहीं गए | फिर प्रश्न यह उठता है की आखिर यह सभा हुई कहाँ?

विष्णु के अवतार की योजना

तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई । रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ॥

नारद बचन सत्य सब करिहउँ । परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ॥

भगवान विष्णु अपने अवतार की योजना की जानकारी देते हैं। वे रघुकुल में अवतार लेंगे और चार भाइयों के रूप में जन्म लेंगे। यह सभी देवताओं को आश्वासन देता है कि अब रावण का संहार सुनिश्चित है।

ब्रह्माजी का अपने धाम को लौटना और शिवजी का स्थिर रहना

निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ ।

बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ ॥

गए देव सब निज निज धामा । भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा ।

इन पंक्तियों के साथ यह समस्या और गंभीर हो जाती है कि आखिर वो गए कहाँ? सब देवताओं का लौटना तो बनता है क्योंकि वो प्रसंग के प्रारम्भ में ही ब्रह्मा जी के पास गए | लेकिन जब शिवजी ने कहा है कि उस समाज में वो भी थे फिर उनका लौटना क्यों नहीं कहा ? और फिर ब्रह्मा जी कौन से निज धाम को लौट गए ?

प्राप्त समाधान जो मात्र अटकलें प्रतीत होती हैं

रामचरितमानस पर ज्वाला प्रसाद जी की एक संजीवनी टीका आती है | इसमें उन्होंने इस प्रसंग पर एक टिप्पणी में विचार किया है और कहा है कि ब्रह्मा जी के दो लोक हैं | एक सुमेरु पर्वत पर सभा होती है और दूसरा निजलोक | देखिये उनकी यह टिप्पणी –

Footnote Brahma Vapasi Sanjeevani Teeka Jwala

हालाँकि यह टिप्पणी बहुत संतोषप्रद नहीं जान पड़ती है | कारण कि अगर यह सभा ब्रह्मलोक में हुई तो फिर शिवजी का लौटा क्यों नहीं कहा ?

आप रामचरितमानस पर विभिन्न टीकाएं और यह संजीवनी टीका भी यहां से निःशुल्क डाऊनलोड कर सकते हैं |

Manas Sanjeevani Teeka Jwala Prasad

रामचरितमानस पर मानस पीयूष नाम की एक प्रसिद्ध टीका छपती है गीता प्रेस गोरखपुर से | यह सात खण्डों में आती है | यह रामचरितमानस का एक विश्वकोश जैसा ग्रन्थ है| इसमें रामचरितमानस के प्राचीन दर्जनों टीकाकारों और व्याख्याकारों के भाव हर चौपाई पर श्री अंजनी नंदन शरण जी द्वारा संकलित किये गए हैं | यह भी आप डाऊनलोड कर सकते हैं –

Manas Piyush Seven 7 Volumes Cover
Manas Piyush First page

मानस पीयूष के इस प्रकरण में प्रोफेसर रामदास गौड़ जी ने अनेक अटकलें लगायी हैं और कहा है इस सभा का न ब्रह्मलोक में होना बनता है और न ही वैकुण्ठ या क्षीर सागर में | फिर यह सभा हुई कहाँ? यह सभा अवश्य शिवलोक में हुई होगी | ऐसा अनुमान उन्होंने प्रस्तुत किया है लेकिन कोई प्रमाण नहीं दिया है |

इस कारण यह प्रसंग सदियों से मानस प्रेमियों के बीच एक प्रहेलिका बन कर रह गयी है जिसका समाधान अत्यावश्यक हो जाता है |

समाधान

रामचरितमानस के कई प्रसंगों को समझने के लिए अन्य ग्रंथों का सहारा लेना पड़ता है | आज बीस साल से अधिक हुए जब रामचरितमानस मुझे लगभग कंठस्थ ही है | लेकिन रामचरितमानस को कितनी बार भी पढ़ लें यह रहस्य उससे खुलता ही नहीं | इसकी चाभी पद्म पुराण में है | जी! पद्म पुराण अठारह महा पुराणों में से एक है | गीताप्रेस से जो पद्म पुराण प्रकाशित होती है वह संक्षिप्त है | चौखम्बा से ७ खण्डों में पद्म पुराण प्रकाशित होती है | उसके पाताल खंड (भाग चार) में इसका समाधान प्रस्तुत होता है | उस समाधान को जानने से पहले इस ग्रन्थ को यहां से निःशुल्क डाऊनलोड कर लें –

Padma Purana Sanskrit 7 volumes Chaukhamba

पद्म पुराण के पाताल खंड के अध्याय सात में यही प्रसंग आया है जहां रावण बहुत तरह के अत्याचार करता है और देवताओं से पुष्पक विमान भी छीन लेता है | सभी देवता फिर ब्रह्मा जी के पास जाते हैं | ब्रह्मा जी इस समस्या को हल करने में अक्षम पाते हैं और वो कैलाश पर्वत पर शिव जी के पास जाते हैं और फिर सब भगवान् विष्णु की स्तुति करते हैं | इससे यह रहस्य स्पष्ट हो जाता है कि यह सभा कैलाश पर्वत पर हुई थी | इसलिए देवगन और ब्रह्मा जी भी अपने अपने लोक को लौट जाते हैं और शिवजी का लौटना नहीं लिखा वह भी समीचीन है |

Padm Puran Patal Khand Ch 7 Brahma

निष्कर्ष

एतावता सदियों से मानस प्रेमियों को उद्वेलित करने वाले इस रहस्य का हमने प्रमाण के साथ उदघाटन किया | यह सभा कैलाश पर्वत पर हुई और सभा के पश्चात सभी देवता और ब्रह्मा जी भी अपने अपने लोक को लौट गए |


रामचरितमानस वह ग्रन्थ है जिसकी गहराई को समझने के लिए अनेक ग्रंथों का अध्ययन करना पड़ता है | ऊपर ऊपर से पढ़ने पर कई बार हमें कई बातें गलत लगती हैं जो मानस का नहीं बल्कि पढ़ने वाले के समझ का दोष है |