गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस न केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह भाषा, साहित्य और दर्शन का अद्वितीय संगम है। इस ग्रंथ की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि तुलसीदास ने भाषा के शब्दों का उपयोग इतने कुशलतापूर्वक किया है कि एक-एक शब्द कथा की गहराई और अर्थ को पूरी तरह से बदल देता है।
इस लेख में हम तुलसीदास की शब्द-क्रीड़ा की गहराई को समझने की कोशिश करेंगे और यह जानेंगे कि कैसे एक ही शब्द कथा को नई ऊंचाई प्रदान कर सकता है।
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इस विषय पर हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है-
पहला उदाहरण: बल, महाबल और अमित बल
रामचरितमानस में जब सुग्रीव के साथ रामजी की मित्रता होती है तो वह सुग्रीव को धैर्य बंधाते हुए कहते हैं –
सखा सोच त्यागहु बल मोरें।
सब विधि घटब काज मैं तोरें।
किष्किंधा काण्ड 7/11
इस पर सुग्रीव संदेह व्यक्त करते हुए कहते हैं कि बाली तो महाबली है –
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा |
बालि महाबल अति रनधीरा ||
किष्किंधा काण्ड 7/12
रामजी पूंछते हैं की फिर आपको विश्वास कैसे होगा? तो वह दुंदुभि के हड्डियों का ढेर दिखाते हैं जिसे रामजी अनायास ही ढहा देते हैं | फिर वह सात ताल के वृक्षों को दिखाते हैं जिसे रामजी एक ही बाण से बींध देते हैं | तब वहाँ पर आया है –
देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती |
बालि बधब इन्ह भइ परतीती ||
किष्किंधा काण्ड 7/14
इस प्रसंग में पहले ‘बल’ शब्द का प्रयोग किया गया, फिर ‘महाबल’ और फिर ‘अमित बल’| एक शब्द के बदलने से बल की कैसे वृद्धि दिखाई गयी यह देखते ही बनता है | ‘बल’, ‘महाबल’ और ‘अमित बल’ जैसे शब्द कथा की गहराई को बढ़ाते हैं और यह दर्शाते हैं कि भाषा में सूक्ष्म परिवर्तन कैसे कथा के भाव को पूरी तरह से बदल सकता है।
दूसरा उदाहरण: एक शब्द से ह्रास
पिछले प्रसंग में एक शब्द के बदलने से बल में वृद्धि दिखाया गया | अब इस प्रकरण में एक शब्द के परिवर्तन से ह्रास का उदाहरण दिखाते हैं | जब सुग्रीव बाली को ललकारते हैं तो बाली दौड़ पड़ता है | वहाँ पंक्ति आयी है –
सुनत बालि क्रोधातुर धावा |
गहि कर चरन नारि समुझावा ||
किष्किंधा काण्ड 7/28
लेकिन फिर तारा उन्हें समझाती हैं कि राम लक्ष्मण जी सुग्रीव के साथ मिल गए हैं जो अतुलित बलशाली हैं | इस पर बाली कहता है कि रामजी तो समदर्शी हैं, वो मेरे साथ अन्याय करेंगे नहीं और कदाचित मेरा वध भी कर देंगे तो मेरा भला ही होगा – मुक्ति मिल जाएगी –
कह बालि सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ,
जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ ||
किष्किंधा काण्ड 7
ऐसा कहकर वह सुग्रीव से लड़ने चल पड़ता है –
अस कहि चला महा अभिमानी |
तृन समान सुग्रीवहि जानी ||
किष्किंधा काण्ड 8/1
पहले धावा शब्द का प्रयोग किया गया, लेकिन जब तारा ने समझाया तो गति में ह्रास आई और इसलिए बाद में चला शब्द का प्रयोग किया गया | एक शब्द के परिवर्तन से गति में ह्रास दिखाना यह गोस्वामी जी की अद्भुत काव्य कला है !
तीसरा उदाहरण: सुन्दरकाण्ड में योद्धाओं की श्रेणी
सुन्दर काण्ड में जब हनुमानजी अशोक वाटिका में फल खाने लगते हैं तो वहाँ के राक्षस योद्धाओं को मार पीट कर भगा देते हैं –
रहे तहां बहु भट रखवारे ।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे ॥
सुन्दरकाण्ड 18/2
ये स्थिति देखकर रावण कुछ और योद्धाओं को भेजता है –
सुनि रावन पठए भट नाना ।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना ॥
सुन्दरकाण्ड 18/5
जब हनुमानजी उन्हें भी मार पीटकर भगा देते हैं तो रावण अपने पुत्र अक्षय कुमार के साथ और कुछ सुभट को भेजता है-
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा ।
चला संग लै सुभट अपारा ॥
सुन्दरकाण्ड 18/7
जब हनुमानजी अक्षय कुमार को भी मारकर इन्हें भी भगा देते हैं तो फिर रावण मेघनाद को भेजता है | तब हनुमानजी देखते हैं –
कपि देखा दारुन भट आवा ।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा ॥
सुन्दरकाण्ड 19/4
आपने शब्दों पर ध्यान दिया ? पहले भट को भेजा गया, फिर सुभट को और फिर दारुण भट को | सिर्फ एक शब्द के परिवर्तन से योद्धाओं के गुणवत्ता और शक्ति में वृद्धि दिखाई गयी की नहीं ? यह है तुलसीदासजी की अद्भुत कला!
निष्कर्ष
रामचरितमानस के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास ने यह सिद्ध कर दिया कि भाषा केवल विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक शक्तिशाली उपकरण है, जो गहराई और अर्थ को प्रकट कर सकता है। उनकी यह शब्द-क्रीड़ा हमें यह सिखाती है कि कैसे भाषा का सूक्ष्म उपयोग हमारी अभिव्यक्ति को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है।
तुलसीदास की इस गहराई को समझने के लिए हमें न केवल उनके शब्दों को पढ़ना चाहिए, बल्कि उनके पीछे छिपे अर्थ को भी आत्मसात करना चाहिए। यह केवल एक साहित्यिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा और मन को भी समृद्ध करती है।
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